सतगुरु से विनती...
लिखित : श्रीपति सरनाड (कन्नड़ा में मूल लेखन)
अनुवाद : आत्माराम जाजोडीया
यह देह, यह आत्मा
चित्त, मन, बुध्दी सभी आप ही के है,
स्वेच्छा से इनका उपयोग कीजिए |
कठपुतली मै प्रभो !
सूत्रचालक आप स्वयं
' मै कर्ता ' भावना को पूरी मिटा दीजिए |
समग्र चैतन्य को
मुद्रित कर स्वमुद्र से
इस अस्तित्व को परमलय दीजिए |
सर्वांग मेरे
तव प्राणाहुती से
दीव्य स्पंदन झंकृत सदैव होते रहें |
मेरा इन्द्रिय समूह
डूबे तेरे रंग में
श्वास उच्छ्वास से परिमल हो तेरी कृपा से |
तेरे लिए, तुझ द्वारा, तुझा ही में जीने का
हो रहस्य हस्तगत, स्वामी तेरी कृपा से !
यह देह, यह आत्मा
चित्त, मन, बुध्दी सभी आप ही के है |
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